लेखक - धुर्वील जिनसे इनका सृजन होता है उनको ये गंदगी कहते है , रक्त के उन लाल बूंदो को ये मामूली कहते है। पांच दिन उससे अछूत की तरह घृणा का व्यवहार करते है कैसे ये मासिक होने को शर्मसार कर अपने अस्तित्व का उपहास करते है। पीरियड्स महावारी रजस्वला आखिर क्या है ये बला ? तुम जो अपनी मर्दानगी पर इतना इतराते हो दरअसल बाप तुम इस क्रिया से ही बन पाते हो। कुछ मर्दो को नहीं है जरा सी तमीज उनके लिए है ये बस उपहास की चीज। हम 21 वी सदी जी रहे है चाँद का नूर पी रहे है पर विस्पर आज भी पैक करके दिया जाता है। जीवनसाथी हो ऐसा राधा कृष्णा के प्यार जैसा जैसे हमे कोई छूत की बीमारी है ऐसे हमे सबसे अलग कर दिया जाता है चुपचाप दर्द पीना सीखा देते है किसी को पता न चले घर में ये भी समझा देते है। भाई पूछता है की पूजा क्यों नहीं की तो उसे सर झुकाकर समझाना पड़ता है चाहे दर्द में रोती रहू पर पापा को देखकर मुस्कुराना पड़ता है। दिल से दिल तक का सफर पेट के निचले हिस्से को जैसे कोई निचोड़ देता है कमर और जांघ की हड्डिया जैसे कोई तोड़ देता है खून की रिस्ति बून्द के साथ तड़पती हूँ मैं और जिसे तुमने
Ideal Thoughts , You will find similar Articles related to Humanity, Nature, Short Stories, Poetry on my blog in Hindi and English which I have experienced in my life