माँ मेरा अभिमान और मेरा स्वाभिमान माँ को अपने शब्दों में बयान कर दू मैं वो नहीं माँ के रूप को साकार कर दू मैं वो नहीं माँ की मैं क्या तारीफ करूँ मैं तो उनकी जूती की धूल भी नहीं। मेरी खुशियों में जो खुश होती है वो मेरी माँ है मेरे दुःख में जो साथ होती है वो मेरी माँ है जिसका आशीर्वाद हमेशा साथ रहे वो मेरी माँ है और बिन कहे सब समझ जाये वो मेरी माँ है। नारी (स्त्री) का क्या दोष है - समाज के आगे विवश स्त्री (नारी) माँ हैं तो मेरा अभिमान है माँ हैं तो मेरा स्वाभिमान है माँ हैं तो मेरा सम्मान है माँ है तो मेरा नाम है। माँ ही तो भगवान का रूप है माँ ही इस जगत का स्वरूप है माँ ही तो जननी का रूप है और माँ ही तो सबसे सुन्दर संसार का स्वरूप है। माँ की ऊँगली पकड़ कर चलना सीखा माँ के आँचल में पलना सीखा अब इससे आगे क्या कहुँ मैं माँ तुझसे ही तो मैंने जीना सीखा । मेरा गांव है शहर से निराला माँ मैं सीधा साधा भोला भाला माँ तेरे लिए सबसे अच्छा हूँ कितना भी बड़ा हो जाऊ मैं माँ लेकिन माँ तेरे लिए तो मैं बच्चा हूँ । ऐ मेरे मालिक
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