स्कूल की मस्ती, यारो की महफ़िल, वो भी क्या दौर था वो भी क्या दिन थे स्कूल का दौर था, यारो की महफ़िल थी और जिंदगी मौज में थी, प्रेयर तो होती थी लेकिन हम कभी प्रेयर में नहीं होते थे, टाई के नाम पर फंदा दे रखा था, लेकिन मेरे यारो ने उसका खेल बना रखा था , मुझे याद है मेरे यारो में किसी को टाई बांधनी भी नहीं आती थी, लंच टाइम से पहले हम अपना लंच खा जाते थे, फिर लंच में सबका लंच छीन कर खाते थे, होमवर्क कभी किया नहीं था, अगर किसी ने किया तो उसकी कॉपी मिलती नहीं थी, क्लास की लड़कियों से होमवर्क करवाते थे क्योकि हमे मौज मस्ती भी करनी होती थी , मॉनिटर की जगह क्लास में हमारी चलती थी, हिस्ट्री और इंग्लिश का पीरियड हमेशा गोल होता था, क्योकि हिस्ट्री की क्लास में नींद आती थी, और इंग्लिश का होमवर्क नहीं होता था, कभी कभी बुक होते हुए भी बोल देते थे की आज बुक नहीं लाये क्योकि इस बहाने सारे दोस्त क्लास से एक साथ बाहर होते थे , दोस्तों के नाम अजीबो गरीब होते थे, जैसे कोई पागल, बंदर, बकरी, लाम्बा, तरनुम, नाटा, स्टीम इंजिन ये सब वो नाम थे जिनको असली नाम के बदले इन सब नामो से जाना जाता था, और सबसे अच्छी बात
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