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क्या भगवान हमें बिन मांगे सब दे देते है - Does God Help Us

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क्या भगवान हमें बिन मांगे सब दे देते है  सब कहते है की भगवान् से कुछ मत मांगो वह बिन मांगे ही दे देते है लेकिन भगवान् को ये बताना पड़ता है की हमें क्या चाहिए।  भगवान् सुनते तो सब की है और सबको फल भी देते है किसी को समय से पहले मिल जाता है और किसी अंत में।  लेकिन हम यह बात इसलिए कह रहे है की हमें भगवन  से मांगना क्यों जरुरी है।  हम सब जानते है की हमारे मन में अनेक  इच्छाएं जागरूक रहती है और थोड़ी थोड़ी देर में हमारी इच्छाएं बदल जाती है।  और इन इच्छाओ को काबू कर पाना हमारे हाथ में थोड़ी न है।  क्योकि हमें बनाया ही ऐसा गया है की हम इच्छाएं करते रहते है और समय समय पर वह इच्छाएं बदल भी जाती है।  अब जब भगवान को हम सबको फल देना होगा तो उन्हें यह कैसे पता लगेगा की हमारे मन में कौन सी इच्छा चल रही है।  क्योकि भगवन जानते तो सब है लेकिन वो  भी तो चाहते है  की मेरा भक्त मुझसे कुछ मांगे कही मैंने बिना मांगे दे दिया और उसे  वह अच्छा न लगा तो। और हमारी इच्छाएं ही इतनी है की भगवान भी हमारी इच्छाओ को देख कर भ्रमित हो जाते है। आपने टीवी पर देखा होगा और पुराणों में पढ़ा भी होगा जब ऋषि मुनि सालो साल तप किया कर

Women Day Special - महिला दिवस पर कुछ खास

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लेखक - धुर्वील  जिनसे इनका सृजन होता है उनको ये गंदगी कहते है , रक्त के उन लाल बूंदो को ये मामूली कहते है।  पांच दिन उससे अछूत की तरह घृणा का व्यवहार करते है कैसे ये मासिक होने को शर्मसार कर अपने अस्तित्व का उपहास करते है।  पीरियड्स महावारी रजस्वला आखिर क्या  है ये बला ? तुम जो अपनी मर्दानगी  पर इतना  इतराते हो  दरअसल बाप तुम इस क्रिया से ही बन पाते हो।   कुछ मर्दो को नहीं है जरा सी तमीज उनके लिए है ये बस उपहास  की चीज।   हम 21 वी सदी जी रहे है  चाँद का नूर पी रहे है  पर विस्पर आज भी पैक करके दिया जाता है।  जीवनसाथी हो ऐसा राधा कृष्णा के प्यार जैसा  जैसे हमे कोई छूत की बीमारी है  ऐसे हमे सबसे अलग कर दिया जाता है  चुपचाप दर्द पीना सीखा देते है  किसी को पता न चले घर में  ये भी समझा देते है।  भाई पूछता है की पूजा क्यों नहीं की  तो उसे सर झुकाकर समझाना पड़ता है  चाहे दर्द में रोती रहू  पर पापा को देखकर मुस्कुराना पड़ता है।  दिल से दिल तक का सफर  पेट के निचले हिस्से को जैसे कोई निचोड़ देता है  कमर और जांघ की हड्डिया जैसे कोई तोड़ देता है  खून की रिस्ति बून्द के साथ तड़पती हूँ मैं  और जिसे तुमने

जीवनसाथी हो ऐसा - राधा कृष्णा का प्यार है जैसा

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जीवनसाथी हो ऐसा - राधा कृष्णा का प्यार है जैसा  जीवनसाथी नहीं पहली आस हो तुम  रिश्तो में नहीं विश्वाश में हो तुम।    प्यार भरे दिन की शुरुआत हो तुम  मेरे लिए हर पल खाश हो तुम।  मेरी जिंदगी की पहचान हो तुम   मुझको समझने मे लाजवाब  हो तुम।    मेरे सुख दुःख में शामिल हो तुम  मुझको हसाने में  माहिर हो तुम।  मेरे परिवार का पिल्लर हो तुम  मेरी जिंदगी की चाबी हो तुम।  चाय में अदरक जैसे  हो तुम  मेरी कड़क चाय हो तुम।     मैं रास्ता भटक जाऊ तो सही रास्ता दिखाओगे तुम मेरी हिम्मत बन साथ खड़े हो जाओगे तुम।  मैं कुछ समझ न पाऊं तो समझाओगे तुम  जिंदगी की भाषा सिखाओगे तुम।    मेरे लिए समाज से टकराओगे तुम  मेरे हर हालात में कदम से कदम मिलाओगे तुम।  मेरी खातिर किसी और को अपनाओगे नहीं तुम  गलती हो जाये तो माफ़ कर जाओगे तुम।    मेरी मोहब्बत का मजाक नहीं उड़ाओगे तुम  हम जैसे भी है वैसे ही हमे अपनाओगे तुम।    दिल की धड़कन बनजाओगे तुम  और उस धड़कन को धड़कना सिखाओगे तुम।   अब कैसे बताये ये तुम्हे  अपना ये रिश्ता है ऐसा   राधा और कृष्णा  के साथ जैसा।     जिस तरह राधा कृष्ण एक साथ है पूरे  उसी तरफ हम तुम्हारे बिन है अ

दिल से दिल तक सफर - दिल के टूटे ख्वाब

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दिल से दिल तक सफर  - दिल के  टूटे ख्वाब  ये दिल भी तो बेचारा था  हर किसी को ये गवारा न  था  हर किसी का हाथ दिल ने  थामा था  हर किसी को अपना माना था  पर ये उन्हें रास न आना था।     हर किसी का ये दिल तोड़ कर जाना था  किसी ने अपने दोस्त का हाथ थामा था  तो किसी ने मेरे ही दोस्त को अपना माना था।   माँ मेरा अभिमान और मेरा स्वाभिमान  इस दिल ने उन सबको समझाना  था  पर उन सबने ही हमको गैर माना था।  उनके  जाने के बाद तो ये सिलसिला था  ये दिल खुद से खफा था और खुद से नाराज था।   इस दिल ने तो उन्हें  बेवफा का नाम दिया था   पर उनके दोस्तों से पता चला कि उन्होंने हमे बेवफा का नाम दे  डाला था।  नारी का क्या दोष - समाज के बेबस नारी  इस दुःख भरी राह में दोस्तों ने संभाला था  और घरवालों का सहारा था।  जब जब दिल को कुछ समझ आता था  उससे पहले चाहने वाला  बहुत दूर चला जाता था।  अब तो बस उस बेवफा को ये बताना था  तेरा पास आना मेरे लिए अच्छा था तेरा दूर चले जाना भी अच्छा था  शायद ऊपर वाले ने हमारा साथ ही इतना  लिखा था। गांव की सभ्यता  इस दिल  जिस जिस को दिल दिया  उसी ने मेरा साथ छोड़  दिया  और मुझे छोड़ कर किसी और क

माँ मेरा अभिमान है - माँ मेरा स्वाभिमान है

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माँ मेरा अभिमान और मेरा स्वाभिमान   माँ को अपने शब्दों में बयान कर दू मैं वो नहीं  माँ के रूप को साकार कर दू मैं वो नहीं  माँ की मैं क्या तारीफ करूँ  मैं तो उनकी जूती की धूल भी नहीं।  मेरी खुशियों में जो खुश होती है वो मेरी माँ है  मेरे दुःख में जो साथ होती है वो  मेरी माँ  है  जिसका आशीर्वाद हमेशा साथ रहे वो  मेरी माँ  है  और बिन कहे सब समझ जाये वो  मेरी माँ  है।  नारी (स्त्री) का क्या दोष है - समाज के आगे विवश स्त्री (नारी) माँ  हैं  तो मेरा अभिमान है  माँ  हैं  तो मेरा स्वाभिमान है माँ  हैं  तो मेरा सम्मान है    माँ  है तो मेरा नाम है।  माँ  ही तो भगवान का रूप है  माँ  ही इस जगत का स्वरूप है  माँ  ही तो जननी का रूप है  और  माँ  ही तो सबसे सुन्दर  संसार का स्वरूप है।   माँ  की ऊँगली पकड़ कर चलना सीखा  माँ  के आँचल में पलना सीखा   अब इससे आगे क्या कहुँ मैं  माँ  तुझसे ही तो मैंने जीना सीखा ।  मेरा गांव है शहर से निराला    माँ  मैं सीधा साधा भोला भाला  माँ  तेरे लिए सबसे अच्छा हूँ  कितना भी बड़ा हो जाऊ मैं  माँ लेकिन  माँ  तेरे लिए तो मैं बच्चा हूँ ।  ऐ मेरे मालिक  

मेरा गांव है शहर से निराला - गांव की सभ्यता

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लेखिका - पूजा डबास  मेरा गांव है शहर से निराला    तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,  और तू मेरे गांव को गवार कहता है।   ऐ शहर मुझे तेरी औकात पता है,  तू चुल्लू भर पानी को वाटर पार्क कहता है।   थक गया हर शख्स काम करते करते , तू इसे अमीरी का बाजार कहता है।  गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,  तेरी सारी फुरसत तेरा इतवार कहता है।   एक पिता और बेटी की कहानी  बड़े बड़े मसले हल करती है यहां पंचायते,  तू अंधी भ्र्ष्ट दलीलों को दरबार कहता है।  बैठ जाते है अपने पराये साथ बैलगाड़ी में , पूरा परिवार भी बैठ न पाए तू उसे कार कहता है।   अब बच्चे भी बड़ो का आदर भूल बैठे है , तू इस दौर को संस्कार कहता है।  गरीबी - एक तस्वीर में बयाँ होती हुई बच्चा जवान थैली और पाउडर का दूध पीकर होता है , मेरे गांव में भैंस और गाय का दूध पीकर जवान होता है।  तेरे यहां अंग्रेजी भाषा में बकबक करते है, और हम गांव की भाषा को समझते है।  जिन्दा है आज भी गांव में देश की संस्कृति,  तू भूल के सभ्यता खुद को तू शहर कहता है।    तू धूल से मुँह को ढकता है , हम आज भी मिटटी को सर माथे लगाते है।  तू किसान को ग्वार कहता है , और वही किसान अन

गरीबी - एक तस्वीर में बयाँ होती हुई - गरीबी की मज़बूरी

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लेखक -योगिता जैन  गरीबी - एक तस्वीर में बयाँ होती हुई एक तस्वीर गरीब की जो बहू रंगो से कलाकार ने सजाई थी , उसे खरीद कर ही मैंने अपनी बैठक में लगवाई थी।  कितना विशाल ह्रदय था मेरा कितना पुण्य कमाया था, एक गरीब का दर्द समझने अपना आँशिया सजाया था।  बड़े और ऊँचे पदों पर ऐसे ही गरीबी को समझाया जाता है  सरकार तो नहीं बदल रही लेकिन हालात को चित्र से बताया जाता है।  हम क्या कर सकते है हमारे हाथ तो मज़बूरी से बंधे है  देश में भूख गरीबी और अशिक्षा से कितने जन पीड़ित पड़े है।    दिल की डोर मैं सम्पन हु तो थोड़ा सा ही दान करके बहुत खुश होता हूँ  क्या यह सही मार्ग है देश की उन्नति का आज यह प्रश्न रखता हूँ।  मुझे तो ये दान लेना और देना दोनों ही बात गलत लगती है  कर्म प्रधान यह देश है मेरा फिर क्यों यहां भीख पलती है।  मंदिर बनवाने से अच्छा कोई औधोगिक क्रांति देश में लाये  किसी गरीब का बच्चा अपने देश में भूखा मर न पाए।  तस्वीर बनाने वाले तेरे हाथ में एक नयी क्रांति दिख जाये  किसी गरीब की तस्वीर अब किसी के घर में भी ना नज़र आये।  Rolex watch  Republic day offer  only -3999/-  whatsapp only-8527860859   थोड़ी

थोड़ी ख़ुशी थोड़ा गम - ख़ुशी और गम का सफर

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थोड़ी ख़ुशी थोड़ा गम - ख़ुशी और गम का सफर  कभी थोड़ी ख़ुशी, कभी थोड़ा गम  कभी थोड़ा ज्यादा , कभी थोड़ा कम  कभी इतनी करीबी कभी इतना सितम  कभी थोड़ा ज्यादा कभी थोड़ा कम... नौकरी करने वालो का जिंदगी का सफर - जब नौकरी मिलेगी तो क्या होगा बॉस की जी हुज़ूरी होगी (जिंदगी की बस यही रखो चाहत बॉस होना चाहिए मस्त) कभी सूर्य का बादलो से निकलना  कभी बादलो का जम के बरसना  कभी लहरों का किनारे को छूना  कभी छू कर वापिस गुजरना  यादो का आना और फिर बिखर जाना   किसी को भुला देना लेकिन फिर भी ख्वाबो में मिलना  किसी की जिंदगी में गूंज से आना  और बिना आहट चले जाना  देता है थोड़ी ख़ुशी थोड़ा गम  कभी थोड़ा ज्यादा कभी थोड़ा कम।  दिल की डोर - दिल का रिश्ता (प्यार, इश्क़ और मोहब्बत) कभी चलते चलते कदमो का ठहरना  कभी ठहरे कदमो का फिर से गति पकड़ना  कभी तो सब कुछ मुक्क्दर पे छोड़ देना  तो कभी हिम्मत की डोर मजबूती से जोड़ लेना  कभी जीवन को कठिन समझना  कभी इतना सरल की जैसे रात और प्रभात का मिलना  कभी आँसुओ का शोलो  पे तड़पना  कभी मुस्कराहट का खिलखिला के बिखरना  देता है  थोड़ी ख़ुशी थोड़ा गम   कभी थोड़ा ज्यादा कभी थोड़ा कम।  2021 नया साल सबके लिए