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मनुष्य में मानवता व इंसानियत (Humanity is important in humans)
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मानवता व इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं
अवश्य पढें आपकी आँखें छलक जायेंगी मानवता व इंसानियत किसी की बपौती नहीं है।
वासु भाई और वीणा बेन गुजरात के एक शहर में रहते हैं। आज दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे। 3 दिन का अवकाश था वे पेशे से चिकित्सक (Doctor) थे ।लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे ।परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता ,छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं।
आज उनका इंदौर - उज्जैन जाने का विचार था। दोनों साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ ,और बढ़ते - बढ़ते वृक्ष बना। दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया। दो (2) साल हो गए ,संतान कोई थी नहीं, इसलिए जब भी मौका मिलता यात्रा का आनंद लेते रहते थे।
विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया, बैंक से लोन लिया। वीणा बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मेडिसिन थे। इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था।
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आज दोनों ने इंदौर जाने का कार्यक्रम बनाया था। जब मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे वासु भाई ने इंदौर के बारे में बहुत सुना था। दोनों खाने के शौकीन भी थे। इंदौर के सराफा बाजार और 56 दुकान पर मिलने वाली मिठाईयां नमकीन के बारे में भी सुना था, साथ ही महाकाल के दर्शन करने की इच्छा थी इसलिए उन्होंने इस बार इंदौर उज्जैन की यात्रा करने का विचार किया था।
यात्रा पर रवाना हुए ,आकाश में बादल घुमड़ रहे थे। मध्य प्रदेश की सीमा लगभग 200 किलोमीटर दूर थी। बारिश होने लगी थी।
म.प्र. सीमा से 40 किलोमीटर पहले एक छोटा शहर था जिसे पार करने में समय लगा। कीचड़ और भारी यातायात में बड़ी कठिनाई से दोनों ने रास्ता पार किया।
दोनों का भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था। परंतु रास्ते में चाय का मन हुआ और उस छोटे शहर से चार - पांच किलोमीटर आगे निकले। सड़क के किनारे उन्हें एक छोटा सा मकान दिखाई दिया। जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे। उन्होंने विचार किया कि यह कोई छोटा ढाबा है। वासु भाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए, दुकान पर कोई नहीं दिखा तो उन्होंने आवाज लगाई, अंदर से एक महिला निकल कर के आई।
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उसने पूछा क्या चाहिए ,भाई ?
वासु भाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए ,और कहा बहन दो कप चाय बना देना। थोड़ी जल्दी बना देना, हमको दूर जाना है।
पैकेट लेकर के गाड़ी में गए । वसु और वीणा ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया।
चाय अभी तक आई नहीं थी।
दोनों कार से निकल कर के दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे। वासु भाई ने फिर आवाज लगाई।
थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई। बोली -भाई बाड़े में तुलसी लेने गई थी, तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई,अब चाय बन रही है।
थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो गंदे से कप में वह गरमा गरम चाय लाई।
गंदे कप को देखकर वासु भाई एकदम से दुखी हो गए, उन्हें अच्छा नहीं लगा और कुछ बोलना चाहते थे। परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उनको रोक दिया।
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चाय के कप उठाए। उसमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी। दोनों ने चाय का एक सिप लिया, ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी, उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई चाय पीकर।
उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा कितने पैसे ?
महिला ने कहा - बीस रुपये
वासु भाई ने सौ का नोट दिया।
महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है। बीस रूपए छुट्टा दे दो। वासुभाई ने बीस रूपए का नोट दिया। महिला ने सौ का नोट वापस कर दिया।
वासु भाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं।
महिला बोली यह पैसे उसी के हैं , चाय के पैसे नहीं लिए।
अरे चाय के पैसे क्यों नहीं लिए ?
जवाब मिला, हम चाय नहीं बेंचते हैं। यह ढाबा नहीं है।
फिर आपने चाय क्यों बना दी ?
- अतिथि आए ,आपने चाय मांगी, हमारे पास दूध भी नहीं था। यह बच्चे के लिए दूध रखा था, परंतु आपको मना कैसे करते, इसलिए इसके दूध की चाय बना दी।
-अभी बच्चे को क्या पिलाओगे ?
-एक दिन दूध नहीं पिएगा तो कुछ नहीं होगा। इसके पापा बीमार हैं वह शहर जा करके दूध ले आते,पर उनको कल से बुखार है। आज अगर ठीक हो जाएगे तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे।
वासु भाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये। इस महिला ने होटल ना होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था ,अतिथि रूप में आकर के।
संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे हैं।
उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं, आपके पति कहां हैं बताएं। महिला उनको भीतर ले गई। अंदर गरीबी पसरी हुई थी। एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे। बहुत दुबले पतले थे।
वासु भाई ने जाकर उनका मस्तक संभाला। माथा और हाथ गर्म हो रहे थे, और कांप रहे थे वासु भाई वापस गाड़ी में गए और दवाई का अपना बैग लेकर के आए। उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर के दी और खिलाई।
फिर कहा- कि इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा।
मैं पीछे शहर में जा कर के और इंजेक्शन और इनके लिए बोतल ले आता हूं। वीणा बेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने का कहा।
गाड़ी लेकर के गए, आधे घंटे में शहर से बोतल, इंजेक्शन ले कर के आए और साथ में दूध की थैलीयां भी लेकर आये।
मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई, और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं ही बैठे रहे।
एक बार और तुलसी और अदरक की चाय बनी।
दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की।
जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुए, तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े।
तीन दिन इंदौर उज्जैन में रहकर, जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने,और दूध की थैली लेकर के आए ।
वापस उस दुकान के सामने रुके, महिला को आवाज लगाई, तो दोनों बाहर निकल कर उनको देख कर बहुत खुश हो गये।
उन्होंने कहा कि आप की दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल स्वस्थ हो गया ।
वासु भाई ने बच्चे को खिलोने दिए , दूध के पैकेट दिए। फिर से चाय बनी, बातचीत हुई ,अपनापन स्थापित हुआ। वासु भाई ने अपना एड्रेस कार्ड दिया और कहा, जब भी आओ जरूर मिले ,और दोनों वहां से अपने शहर की ओर लौट गये।
शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी और फिर एक फैसला लिया।
अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि,अब आगे से जो भी मरीज आयें, केवल उसका नाम लिखेंगे ,फीस नहीं लेंगे , फीस मैं खुद लूंगा।
और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया।
केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते ।
धीरे धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई। दूसरे डाक्टरों ने सुना।उ न्हें लगा कि इस कारण से हमारी प्रैक्टिस कम हो जाएगी ,और लोग हमारी निंदा करेंगे । उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा।
एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ वासु भाई से मिलने आए ,उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो ?
तब वासु भाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी उद्वेलित हो गया।
वासु भाई ने कहा कि मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मेरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा। एमबीबीएस में भी, एमडी में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना, परंतु सभ्यता संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है, वह मुझसे आगे निकल गयी। तो मैं अब पीछे कैसे रहूं?
इसलिए मैं अतिथि सेवा में और मानव सेवा में भी गोल्ड मेडलिस्ट बनूंगा। इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की, और मैं यह कहता हूं कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का है। सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा भावना से काम करें। गरीबों की निशुल्क सेवा करें,उपचार करें। यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं ।
अगर परमात्मा ने मानव सेवा का अवसर प्रदान किया है तो हमे उसे सर झुककर अपनाना चाहिए और मानव सेवा को सर्वप्रथम रखना चाहिए , यह अनुरोध में सभी से करता हूँ।
एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासु भाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर के चिकित्सकीय सेवा करुंगा।
यह छोटी सी व्याख्या मुझे बहुत अच्छी लगी और मैं आप सबको शेयर कर रहा हूँ। जो सभी डॉक्टर है मेरा उन सबसे हाथ जोड़ 🙏 कर आग्रह है कि अपने व्यवसाय को सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं अपितु मानव सेवा में लगाओ।
आज हमारे देश और अन्य देशो में मानव बहुत खतरनाक कोरोना जैसे बीमारी से जूझ रहा है, और ऐसे समय में आप सभी डॉक्टर्स भाइयो और बहनो को मानव सेवा में लगाना चाहिए न की पैसा कमाने में। बहुत से डॉक्टर मानव सेवा में लगे हुए और कुछ ऐसे भी है जो मानव का खून निचोड़ने में लगे हुए है। आप सभी समझदार है ऐसे समय में और जब भी मौका मिले मानव सेवा में पीछे ना रहे।
धन्यवाद
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Superb 👍
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