गरीबी - एक तस्वीर में बयाँ होती हुई - गरीबी की मज़बूरी

लेखक -योगिता जैन 

गरीबी - एक तस्वीर में बयाँ होती हुई



एक तस्वीर गरीब की जो बहू रंगो से कलाकार ने सजाई थी ,
उसे खरीद कर ही मैंने अपनी बैठक में लगवाई थी। 

कितना विशाल ह्रदय था मेरा कितना पुण्य कमाया था,
एक गरीब का दर्द समझने अपना आँशिया सजाया था। 

बड़े और ऊँचे पदों पर ऐसे ही गरीबी को समझाया जाता है 
सरकार तो नहीं बदल रही लेकिन हालात को चित्र से बताया जाता है। 

हम क्या कर सकते है हमारे हाथ तो मज़बूरी से बंधे है 
देश में भूख गरीबी और अशिक्षा से कितने जन पीड़ित पड़े है। 
 

मैं सम्पन हु तो थोड़ा सा ही दान करके बहुत खुश होता हूँ 
क्या यह सही मार्ग है देश की उन्नति का आज यह प्रश्न रखता हूँ। 

मुझे तो ये दान लेना और देना दोनों ही बात गलत लगती है 
कर्म प्रधान यह देश है मेरा फिर क्यों यहां भीख पलती है। 

मंदिर बनवाने से अच्छा कोई औधोगिक क्रांति देश में लाये 
किसी गरीब का बच्चा अपने देश में भूखा मर न पाए। 

तस्वीर बनाने वाले तेरे हाथ में एक नयी क्रांति दिख जाये 
किसी गरीब की तस्वीर अब किसी के घर में भी ना नज़र आये। 
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