दिल की डोर - दिल का रिश्ता (प्यार, इश्क़ और मोहब्बत)

 लेखक - नविन मेहता 

दिल की डोर - दिल का रिश्ता 


दिल से बंधी है दिल की डोर 
अपना रिश्ता हो न कमजोर 
वादा है अपना होंगे न दूर 
हो जाये कितना भी मजबूर !

निकले तो सफर अनजाने चले 
तुम्हे जीवन का सार बनाने चले 
बाँध के प्यारा सा बंधन तुमसे 
जहाँ के रिश्ते  निभाने चले !
 
तेरे आने से  जीवन में बहार आ गई 
खिल गए मन के फूल जो थी मुरझा गयी 
मैं अक्सर उलझ जाता था बातो में 
अब तुम मेरी सारी गुत्थी सुलझा गयी !

खूबसूरती तेरी चाँद जैसी 
थी अनजानी अब मेहमान जैसी 
एकपल बिन तेरे अब रहा न जाये 
तेरी अदा न जाने कैसा जादू चलाये !

तेरे लिए मैं कोई गीत गुनगुनाऊं
हो पसंद तुम्हे वो कहानी सुनाऊ 
कभी ना आए जो नींद तुम्हे 
में अपनी बाहों ले तुझे सुलाऊ !
तुम्हारी खामोशी पर मैं खामोश हो जाऊ 
तुम रूठो कभी तो मैं प्यार से तुम्हे मनाऊ 
तुम नादान सी मेरी कुछ मत सुनना 
फिर तुझे गले लगाकर मैं तुझे समझाऊ !

तुम गुजरोगी जिस रास्ते से मैं फूल बिझाऊगा 
मीठी मीठी बातो से तेरा दिल बहलाऊंगा 
कोशिस ऐसी के कभी आँखों में आंसू न आए 
करूंगा ऐसा प्यार के तू सारे गम भूल जाए ! 

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